School Chle Hum
एक्चुअली टॉपिक मेरे लिए है , हाल ही में मैंने स्कूल ज्वाइन किया, यादें लौट आईं ........बच्चे ,टीचर, प्रेयर, लंच और हां,"पढ़ाई भी"।
माहौल तो वैसा ही था जगह और जज्बात बदल गए, अब पढ़ाना होता है यार। सबके बारे में चर्चा होगी और कुछ पहले हुईं भी हैं यहां बात करते हैं "आखिर बच्चों और पढ़ाई के बीच रिश्ता कैसा है आजकल"
बुक्स तुम दूर रहो प्लीज !!
जी हां, ये रिश्ता अब रेयरली दिखाई देता है, कि बच्चा बुक ओपन करके खुद से पन्नो को पलटे। अब तो पूरा साल खत्म होने के बाद भी " किताब के अंदर की खुशबू नहीं निकलती", स्टेशनरी वाले अब बुक्स के बजाए लूडो ज्यादा रखने लगे हैं।
छूना मना है !!
तो मास्टर का डंडा अब न जाने कहां गायब है ? पॉलिसी है बच्चों को प्यार से समझाने की, छुआ तो फिर मास्टर की खैर नहीं। अपने दिनों से तुलना करें तो ये सरासर अत्याचार है , डंडे के कांसेप्ट को खत्म करने की वैसे जरुरत नहीं थी , बच्चे स्टिक बोल कर वैसे ही 'डंडे के भार' को कम कर दे रहें हैं।
हाई स्कूल बोर्ड
यहां तो अब बच्चे बोर्ड का मतलब ही नहीं जानते , कहते हैं "लिख के आओ बस" फेल तो होंगे नहीं , वैसे भी हाई स्कूल तो डेट ऑफ़ बर्थ के काम का है।
11 वीं क्लास
जुलाई तक बच्चा 10 वीं की तन्हाई से उभर के आता है , तो तीन यक्ष प्रश्न उसका स्वागत करते हैं - भइया क्या लोगे ?? साइंस , कॉमर्स या आर्ट्स !!
अब परंपरा के अनुसार बच्चे और फैमिली की रेप्युटेशन बनी रहे इसलिए , बड़े सजा -धजा के बच्चे को साइंस की कक्षा में प्रवेश करवाया जाता है , ऐसे ही कुछ खिलाड़ी कॉमर्स तो कुछ आर्ट्स के कमरों में अपना कोना ढूँढ़ते हैं।
फरवरी में ही अपने कौशल का परिचय देने वाले ये छात्र , अब तक अपनी फेयर कॉपी और रफ़ कॉपी के बीच अंतर करना तक नहीं सीख पाए होते हैं।
12 वीं !!!!!!!!
"सीनियरमॉस्ट क्लास ऑफ़ द स्कूल" ये इनका टैग है , बाकि ये अभी कुछ महीने इसे प्रूफ करने में लगाएंगे और बचे टाइम में फ्यूचर प्लानिंग और फेयरवेल के सपने दखेंगे , बोर्ड का मतलब इन्हें दिवाली बताती है और 12वीं का रंग चढ़ेगा इनपर होली के बाद !! अब ये तैयारी करेंगे और देंगे बोर्ड के एग्जाम !!
चर्चा जारी रहेगी ......... !!
Bhut khoob....sach me mja aya pdhkr...👌👌👌👌
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