Baaten.........
अच्छा .......!! एक महत्वपूर्ण 'बात' है ......... बात जी हाँ बात
यह तो नहीं पता कि किसने बनाया वाक्य सौ बातो की एक बात ......... अपने यहां तो एक बात की सौ बात का कल्चर है। किसी भी एक बात का सैम्पल तैयार कर लो और कुछ ही देर बाद उसकी सौ -हज़ार वैरायटी बन जाती हैं वो भी वैल्यू एडिशन के साथ .....है न मजेदार प्रोसेसिंग।
हालाँकि ऐसा बाहरी देशो मे कम ही देखने को मिलता है इसके पीछे का कारण हमेशा से ही हमारा सभ्य कल्चर रहा है जहाँ किसी भी चर्चा पर विशेष विश्लेषण ,आलोचना ,तथा समालोचनाएँ होती रहती हैं और मजे की बात ये है कि हमारी चर्चाओं का निष्कर्ष कभी नहीं निकलता ,ऐसा क्यों भला ?? ......... क्यूंकि बात खत्म करना हमने सीखा ही नहीं। खैर .........काम नहीं है तो कुछ न कुछ सोचना तो दिमाग का काम है ही और न सोचें तो ये जंग खा जायेगा। ऐसा हर किसी के साथ है -नैसर्गिक नियम है ज्यादा सोचो मत ........!!
अच्छा हमारे यहाँ लोग ऐसे ही खाली समय का उपयोग कर आपस में चर्चाएं करते रहते ,अपने ज्ञान का गुल्लक सबके सामने खोलते और जमा पूँजी सभी को थोड़ी थोड़ी मिलती .......जो अब पूँजीवादी ढर्रे की और बढ़ चली है।
गुरु -शिष्य परंपरा रही जहां प्राकर्तिक वातावरण में गुरु शिष्यों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते और बच्चे केवल ज्ञान तक ही सिमट कर न रहते बल्कि सो कॉल्ड एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी भी करते इससे उनकी पर्सनालिटी में आता था निखार।
लोग खेती करते -मिल बांटकर खाते ,वर्तमान कौशल रोजगार का कांसेप्ट उस समय फला -फुला। कुल मिला के प्राचीन और मध्य भारत था एकदम ऑसम।
मगर फिर बदला मौसम
और आये कुछ फेयर हैंडसम ,
उन्होंने अपनी जीभ के तीव्र ढलान पर बोलने की कोशिश की तो शब्द फिसला और निकला इंडिया .......
अब चाल -ढाल बदली ,मिजाज बदले और बदला वातावरण .......और बाँट गए देश को सर के पास रख गए ऐसा फुस्सी बॉम जो कभी-कभी धधककर दिमाग को गरम करता रहता है।
आज कभी कभी बहस छिड़ जाती है कि भारत बनाम इंडिया। ये कांसेप्ट नया नहीं है साहब .........!! जरुरत पड़ती है इसकी कभी-कभी ,इस पर चर्चा आगे और होती रहेगी ........क्यों ??
क्यों कि अपने यहाँ चर्चाएँ खत्म कहाँ होती हैं......... !!
यह तो नहीं पता कि किसने बनाया वाक्य सौ बातो की एक बात ......... अपने यहां तो एक बात की सौ बात का कल्चर है। किसी भी एक बात का सैम्पल तैयार कर लो और कुछ ही देर बाद उसकी सौ -हज़ार वैरायटी बन जाती हैं वो भी वैल्यू एडिशन के साथ .....है न मजेदार प्रोसेसिंग।
हालाँकि ऐसा बाहरी देशो मे कम ही देखने को मिलता है इसके पीछे का कारण हमेशा से ही हमारा सभ्य कल्चर रहा है जहाँ किसी भी चर्चा पर विशेष विश्लेषण ,आलोचना ,तथा समालोचनाएँ होती रहती हैं और मजे की बात ये है कि हमारी चर्चाओं का निष्कर्ष कभी नहीं निकलता ,ऐसा क्यों भला ?? ......... क्यूंकि बात खत्म करना हमने सीखा ही नहीं। खैर .........काम नहीं है तो कुछ न कुछ सोचना तो दिमाग का काम है ही और न सोचें तो ये जंग खा जायेगा। ऐसा हर किसी के साथ है -नैसर्गिक नियम है ज्यादा सोचो मत ........!!
अच्छा हमारे यहाँ लोग ऐसे ही खाली समय का उपयोग कर आपस में चर्चाएं करते रहते ,अपने ज्ञान का गुल्लक सबके सामने खोलते और जमा पूँजी सभी को थोड़ी थोड़ी मिलती .......जो अब पूँजीवादी ढर्रे की और बढ़ चली है।
गुरु -शिष्य परंपरा रही जहां प्राकर्तिक वातावरण में गुरु शिष्यों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते और बच्चे केवल ज्ञान तक ही सिमट कर न रहते बल्कि सो कॉल्ड एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी भी करते इससे उनकी पर्सनालिटी में आता था निखार।
लोग खेती करते -मिल बांटकर खाते ,वर्तमान कौशल रोजगार का कांसेप्ट उस समय फला -फुला। कुल मिला के प्राचीन और मध्य भारत था एकदम ऑसम।
मगर फिर बदला मौसम
और आये कुछ फेयर हैंडसम ,
उन्होंने अपनी जीभ के तीव्र ढलान पर बोलने की कोशिश की तो शब्द फिसला और निकला इंडिया .......
अब चाल -ढाल बदली ,मिजाज बदले और बदला वातावरण .......और बाँट गए देश को सर के पास रख गए ऐसा फुस्सी बॉम जो कभी-कभी धधककर दिमाग को गरम करता रहता है।
आज कभी कभी बहस छिड़ जाती है कि भारत बनाम इंडिया। ये कांसेप्ट नया नहीं है साहब .........!! जरुरत पड़ती है इसकी कभी-कभी ,इस पर चर्चा आगे और होती रहेगी ........क्यों ??
क्यों कि अपने यहाँ चर्चाएँ खत्म कहाँ होती हैं......... !!
👌👌👌👌👍
ReplyDeleteवाह अति उत्कृष्ट लेख।
ReplyDeleteउचित कथन।।
👌👌✍️✍️
Mst��������
ReplyDeleteBahut khoob...
ReplyDeleteVery nice yr
ReplyDelete👌👌👌👌
ReplyDeletedhanywaad aap sbhi ka...…
ReplyDeleteaage likne k liye prerit krte rhe …...aapke sujhao ka swagat rhega…..
Gjb...👍
ReplyDelete👌
ReplyDeleteBahut khoob
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