Bazarwaad
कुछ समय पहले फेसबुक पर स्क्रॉल डाउन करते वक़्त एक पोस्ट पढ़ी जिसमें लिखा था -"आने वाले 20 साल बाद यदि बच्चों से पूछा जाये कि दशहरा , दिवाली या होली पर क्या होता है तो उनका जवाब होगा -अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर सेल। "
बदलते दौर में लोगों के तौर-तरीके भी बदले हैं ,और खरीददारी के मंच भी।
खरीददारी एक ऐसा टर्म है जो निरंतर चलता रहेगा ,मगर आज के समय लेन-देन के बीच जिस पर सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है वो है -बाजार !!
माहौल त्यौहारी है और मौका खरीददारी का , ऐसे में सबकी नजर बाज़ार पर होती है ,हो भी क्यों न भला ?? किसी के लिए प्रॉफिट का समय है तो किसी के लिए काम की शुरुआत। भारतीय बाज़ार इस ख़ास माहौल के लिए विश्व प्रसिद्ध रहे हैं , यहीं कारण रहा कि वैश्वीकरण के बाद से लगातार विदेशी कंपनियों ने भारतीय बाज़ार पर अपना दम-ख़म जमाने के प्रयास किये। इन कंपनियों का ऐसा प्रभाव रहा कि प्रारम्भ की लाइनें इनकी दास्तां को बयाँ करती हैं।
आज टेक्नोलॉजी ने खरीददारी को एक टच तक सीमित कर दिया है साथ ही सामान खरीदने की उन ढेरों कलाओं (बार्गेनिंग) को भी धुंधला कर दिया जो लोगों ने प्राचीन समय से अपने में विकसित की थीं।
मार्केटिंग का प्रभाव इस कदर बढ़ रहा है कि लोग त्यौहार का मजा लें या न लें , मगर ऑनलाइन सेल से अगर खरीददारी न की जाये तो सोशल मीडिया का प्रॉफिटेबल यूज़ न मिला समझो।
चूँकि ऑनलाइन बाजार हो या सामान्य ,यहां सीधा सा सिद्धांत है लाभ कमाना , लाभ नहीं तो कुछ नहीं।
हाल के वर्षों में लाभ का यह गणित विदेशी ऑनलाइन मार्केट की ओर शिफ्ट हो रहा है , ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनिया हों या सोशल मीडिया ये जमकर अपनी जेबें भर रहीं हैं (भारतीय त्योहारों के असली मजे तो ये ही ले रहीं हैं।) इनकी वृद्धि का असर भारतीय बाज़ारों पर साफ़ नजर आता है ,अब बाज़ारों में वह रौनक नहीं है।
वर्तमान में चर्चित कोरोना ने विश्व भर के बाज़ारों पर अपना कहर बरसाया , भारत जैसे अधिक आबादी और अपेक्षाकृत गरीब देश के लिए यह और भी बुरे अनुभव लेकर आया और इसका असर लम्बा रहने के भी अनुमान हैं। ऐसे में व्यापारी वर्ग तथा छोटे उद्योग वर्ग की सारी उम्मीदें , इस त्यौहारी सीजन से ही हैं। लोग और सरकार दोनों कयास लगाए हुए हैं कि मांग-पूर्ति का चक्र तेजी से चले और आर्थिक गतिविधि में इजाफा हो। ऐसे में जरुरी है कि भारतीय उत्पादों की अच्छी बिक्री हो , किन्तु ऑनलाइन मार्केट इस राह में बड़ा बाधक बन सकता है , जिसके लाभ का अत्यंत कम भाग ही भारत को मिलता है।
तो क्या किया जाए ??
ऑनलाइन बाजार की परम्परा चल तो पड़ी है ,जिसे रोकना शायद मुश्किल हो लेकिन इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है :-
- ऑनलाइन मार्केट पर अपनी निर्भरता कम से कम रखें , अच्छा हो कि आप स्वयं दुकान जाकर मोलभाव करें ;
- देशी उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा खरीददारी करें , हो सके तो ऑनलाइन मार्किट से भी देशी सामान ही खरीदें ;
- हस्तशिल्प उत्पादों की खरीददारी करना बेहतर विकल्प हो सकता है , इससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा (इस त्यौहारी सीजन में कम से कम एक उत्पाद अपने राज्य, परम्परा से जुड़ा हुआ जरूर खरीदें );
- इस समय उचित मोलभाव करें , अपने बजट को भी ध्यान में रखें और सामने वाले की जरूरत को भी;
- बेवजह के सामान खरीदने से बचें ,गुणवत्ता का ख्याल रखें (ध्यान रहे ऑनलाइन मार्केटिंग एक प्रकार की लत भी होती है )
अंत में यही कि ,इसे आप मेरी मार्केटिंग कहें या एक भावनात्मक अपील ,आपके द्वारा खरीदा गया माटी का एक दिया किसी की दिवाली को मजेदार बना सकता है।
Amazing thinking skill with full gyaan 👌
ReplyDeleteBhut bdiya masab.....
ReplyDeleteShirshak bilkul center of attraction h masab....🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteAwesome thoughts
ReplyDeleteRight sir
🙏🙏
Great thought👍
ReplyDeletemind blowing views.we should aware people to buy local products hence to achieve ultimate goal of atmnirbhar bharat .
ReplyDeletethanks to all....
ReplyDeleteVryyy amazing thoughts ... Keep it up vijay��
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