Mizaaj

          लगभग दो हफ्ते बाद पुनः शुरू कर रहा हूँ , लिखने का अपना अलग ही मजा है। इस बीच ढेरों घटनाएं घटी और सबने अपना अपना इन्फ्लुएंस दिया , हमारा देश हमेशा अपनी विविधता में एकता (यूनिटी इन डाइवर्सिटी ) के लिए पॉपुलर रहा है ,और हो भी क्यों न ?? वैरायटी तो हममें जम कर भरी है। 

                        घटनाओं की विभिनत्ता के बाद भी एक चीज़ जो नहीं बदली वो है हमारे देश में राजनीति और राजनेताओं का मिजाज !!

                        भारतीय राजनीति का ये एक गजब पहलू है कि आप यहां अच्छे काम करके भले ही फेमस न हों मगर बुरे काम या यूँ कहें कि किन्ही बेवजह की वारदातों में भाग लेकर जरूर चमक जाएंगे। 


आज भारत का राजनीतिक स्वरुप इतनी विविधता लिए है और घटिया वारदातों में लिप्त है कि महान कौटिल्य की नीति भी इसे समझ न पाए। यहां अब केंद्र और राज्य तथा स्थानीय सरकारों के काम में कोई फर्क नजर ही नहीं आता ,हर कोई एक-दूसरे के कामों में आसानी से दखल देने लगता है। 

         सत्ता पक्ष का  सख्त रवैया कहें या राज्यों की मनमानी , न राज्य केंद्र की बात मानने को तैयार हैं और न ही केंद्र नरमी के मूड में। विपक्ष का तो काम ही है कि सरकार के कामों पर नजर रखे और कमियां भी निकाले , मगर सत्ता में बैठे नेता भी कभी -कभी अजीबो-गरीब बयान  देते हैं , जिसे समझना वाकई  मुश्किल हो जाता है, अब इसमें कोरोना के कारण कम हुई आर्थिक गतिविधि  को लेकर माननीय वित्त मंत्री का बयान है कि सब "एक्ट ऑफ़ गॉड " है, इसमें मैडम क्या बताना चाह रही हैं कि हम इससे नहीं निपट सकते सब भगवान् भरोसे है !!
प्याज की बढ़ती कीमत को लेकर मैडम का  बयान कि "वह उस परिवार से आती हैं जहां प्याज नहीं खाया जाता" , अब क्या कहें ?? ऐसे बयानों पर.......... खैर!!  राजनीति है भइया !!

महाभारत के प्रारंभ में एक बात बतायी गयी है कि "जो भी दुनिया में घट रहा है वह महाभारत में मिल जाएगा मगर जो महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं मिलेगा।"

भारतीय राजनीति के परिदृश्य को देखकर उपरोक्त लाइनों  का अर्थ भी धुंधला सा लगता है , भले ही वह हाथरस जैसी वीभत्स घटना या फिर राजस्थान में हुई घटना , इसका जम कर राजनीतिकरण हुआ , दोषी कौन हैं? , उन पर क्या कर्यवाई हुई ? इसकी किसी को खबर नहीं है , बस नेता अपनी कुर्सी के  लिए शक्ति प्रदर्शन  किये जा रहे हैं। 

     इन सबके बीच एक अन्य जो इस दौरान खूब चमका वह है मीडिया !! अपने काम के जरिये देश की सत्ता को हिला देने वाले मीडिया ने भी दलगत रूख अख्तियार कर लिया है , इसके काम से  पारदर्शिता बहुत दूर जाने लगी है , सम्पूर्ण लॉकडाउन के काल में जितनी भी घटनाएं घटी उनमे से 95 % घटनाएं बेवजह थी जिन्हें बड़े जोर-शोर से प्रसारित किया गया। 

अपनी टीआरपी चमकाने के लिए अब मीडिया कुछ भी करने को उतारू है , ( दिन भर की खबरों के प्रसारण के दौरान न जाने कितनी बार टीवी मीडिया वाले , दूसरे चैनलों और अपनी टीआरपी की तुलना करते रहते हैं ), अब खबर मिली है कि यहां भी ये लोग कुछ गड़बड़ कर बैठे(  खैर ये भी राजनीति का ही एक खेल है। )
 
अंत में यही कि राजनीति , मीडिया दोनों अलग अलग हैं ,और भला इसी में है कि दोनों अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहें ,न कि मीडिया का राजनीतिकरण करने में। राजनेता कुछ काम करके ही शक्ति दिखाएं तो सही नहीं तो बेवजह का समय उनपर भी न लगाना ही बेहतर होगा।  



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