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सबसे पहले तो आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ...............  आज आप  74 साल के भारत में खुलकर सांस ले रहे हैं, और अपार संभावनाओं के बीच खड़े हैं। 

हर साल की तरह ही भाषण , पुरानी उपलब्धियों  पर चर्चा , झण्डा रोहण सभी हुआ , मगर इस बार आप लिफाफे में रखे दो लड्डू ,एक समोसा मिस कर रहे होंगे।

हाल ही में मूड ऑफ़ दी नेशन रिपोर्ट जारी हुई , वर्तमान सरकार पर 77% लोगों ने भरोसा जताया है और कार्यों की सराहना की है। इसमें लोग 370 , चीन के साथ जवाबी कार्यवाही , नेपाल के मुद्दों को लेकर खासा एक्ससाइटेड रहे , साथ ही सरकार से मिलने वाली आर्थिक सब्सिडी को लेकर भी। यह वाकई अच्छा है कि सरकार नागरिक हितों का ख्याल रख रही है और जरुरी सेवाओं के साथ -साथ आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रहीं है। मगर ध्यान रखें कि ज्यादा समय तक ऐसा होना अच्छा नहीं है। 

अक्सर ऐसा होता है कि सबकुछ बना -बनाया हाथ पर मिलता रहे तो आदमी --नीरस और आलसी हो जाता है......... मेरा मामला भी कुछ-कुछ ऐसा रहा है। 

वैसे सरकार की मंशा तो ठीक है कि गरीब आदमी की आर्थिक मदद और चीजें सस्ते दामों पर उपलब्ध हों , मगर परेशानी यह है कि हमारे यहां जनता अपना भविष्य इसी सहायता तक सीमित कर दे रही है। गाँव -छोटे शहरों के लोग रोजगार और खाने के बंदोबस्त के लिए चार जगहों पर जाते , पूछताछ करते , लोगों से मिलते , ये इन्हे ज्यादा सामाजिक और जिम्मेदार बनाता , मगर अब बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र तक के सभी सरकारी सब्सिडी का फायदा उठाने , हाथों में मोबाइल थामे दिन भर सस्ते डेटा का लुफ्त उठाने में व्यस्त हैं। 

           मेरा मकसत यहाँ किसी के विरुद्ध जाना नहीं है , मगर बेवजह वक़्त जाया करना आखिर कहां की समझदारी है ??

80 -90 के दशक तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 1 $ प्रतिदिन से थी ,इससे दो वक़्त खाने का बंदोबस्त कर पाना भी मुश्किल था ,इसलिए लोग चाट-छोले पर कम ध्यान दिया करते'थे , आज प्रति व्यक्ति आय प्रतिदिन 5 $ के लगभग है जो आपको अच्छे खाने के'साथ -साथ चाट-छोले भी दे सकती है। 

भारतीय लोग अक्सर  खुश रहते हैं , इसकी वजह सम्पनता नहीं बल्कि सब कुछ  आसानी से मिल जाना और नहीं भी मिला तो किस्मत का खेल मानकर अपने को दिलासा देना रहा है। 

विकसित समाजों में पैसों को विकास का पैमाना माना जाता है , और  इसके लिए वे जी-तोड़ मेहनत करते हैं , जो अंततः उन्हें ख़ुशी देता है। हमारे यहां अभी भी कैशबैक पर पैसा बचाकर अपनी पसंद की घड़ी खरीदना ख़ुशी प्रदान करता है। 

धीरे-धीरे ही सही सरकारी नीतियां उस ओर अग्रसर हो रही हैं जहां सफलता हासिल हो सके , यहां सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाना काम नहीं है , मगर इतना जरूर है कि अभी ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो 10  नए आईडिया  को आपके सामने रखने में सक्षम है ,हमको तो केवल एक पर ही काम करना है। ऐसा न हो कि आने वाले 20-30 सालों में आज की खिलखिलाती युवा आबादी , मुफ्त के मजे के चक्कर में  खांसती नजर आये। 



 

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