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 हाल ही में एक बहस जो काफी चर्चित रही और हमेशा से ही सोचनीय  विषय रही है, वह है - हिंदी भाषा का प्रयोग। 


भारत जैसे देश में जहां संस्कृत भाषा के साथ-साथ अनेकों भाषाओं का उदय हुआ , वहां संस्कृत की अनुवर्ती भाषा हिंदी का हाल बेहाल नजर आ रहा है। कुछ जगहों  पर तो हिंदी के  लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसे हालात हैं।


प्राचीन काल से आधुनिक तक की यात्रा का अवलोकन करते हैं तो पाएंगे कि भारत पर अनेकों विदेशी साम्राज्यों का शासन रहा , हमने सभी की भाषा ,कला ,संस्कृति को अपनाया और उचित स्थान दिया, किन्तु अंग्रेजी सत्ता ने यहां राजनीति ,शिक्षा नीति , प्रशासनिक नीति जैसी प्रमुख नीतियों से अंग्रेजी को थोपना जारी रखा , एक लम्बे अंग्रेज शासन का प्रभाव यह रहा कि भारत का एक वर्ग अंग्रेजी के प्रभाव में अच्छे से आ गया , जिसे उच्च मध्यम वर्ग गया , बाद में तो फिर वही कि अंग्रेज चले गए और अंग्रेजी छोड़ गए। 

              

इस ऐतिहासिक घटना का प्रभाव यह रहा कि आज भी लोग हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को महत्व देते हैं। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा बेबाक अंग्रेजी बोले , स्कूल ऐसा हो जहां भले ही सिखाएं  कुछ नहीं मगर अंग्रेजी बोलने का कल्चर जरूर हो। 


यहां महात्मा गांधी ने भी कहा है "भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां माता-पिता अपने बच्चों को मातृभाषा सिखाने के बजाए अंग्रेजी सिखाने पर ज्यादा जोर देते हैं। "

अब समाज की बात तो क्या ही की जाए , गाँव ,आस-पड़ोस में उसी बच्चे के उदहारण पेश किये जाएंगे जो चार अक्षर अंग्रेजी के बोल लेता हो। 

संप्रभु भारत की बात की जाये तो यहां 80-90 % सरकारी कामकाज अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं , यानी आज भी भारत सही मायनों में स्वयं में प्रभु नहीं बन पाया है। आप स्वयं ही इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछड़ेपन और गरीबी से जूझता यह देश , जहां शौच कहां करना चाहिए यह समझाने के लिए भी टी.वी. पर प्रचार-प्रसार करने पड़ते हों , वहां सब काम अंग्रेजी में होंगे तो भला जनता क्या समझेगी ??

एक अन्य बात कि यदि आप अंग्रेजी न समझते हों या अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ नहीं है तो किसी सरकारी दफ्तर या कोर्ट-कचहरी के काम में आपका कोई महत्व नहीं रह जाएगा , यहां आसानी  से आपको अंग्रेजी के चंद वाक्यों के सहारे परेशान किया जा सकता है। 


पुनः हिंदी की ओर लौटते हैं , यह एक ऐसी भाषा है जो भारत में तो आसानी से बोली और समझी जाती है (यहां कुछ राज्य इसे हिंदी को थोपना कह सकते हैं , मगर वे अंग्रेजी के स्थान पर अपनी स्थानीय भाषा को ही काम-काज की भाषा के तौर पर प्रयोग करें तो यह समस्या दूर हो सकती है। )

                                   

                  यदि बच्चा आरंभिक कुछ वर्षों तक मातृभाषा सीखता है तो उसे क्यों कठिनाई होनी चाहिए ?? माना कि अंग्रेजी वैश्विक भाषा है , मगर यदि विश्व भर के विकसित और उभरते देशों की भाषा पर गौर किया जाये तो उन्होंने मातृभाषा को ही पहले पायदान पर रखा है और अंग्रेजी को वैकल्पिक तौर पर। इस स्थिति में वहां लोग सरकारी तथा अन्य कार्यों में ज्यादा दक्षता हांसिल कर पाए , क्योंकि वे सभी निर्णयों ,संवादों को बेहतर समझ पाए हैं।  


हिंदी के लिए हिंदी दिवस जैसे आयोजन करना एक प्रकार से यह व्यक्त करना ही है कि इसे संरक्षण की आवश्यकता है इसे इस रूप में न लेकर स्वतंत्र प्रसार के लिए छोड़ देना चाहिए। वर्तमान में भी लाखों-लाख लोग बड़े शौक से हिंदी सीखना और समझना चाहते हैं ,इसे लिखना पसंद करते हैं और बेबाक बोलना चाहते हैं , क्योंकि अंग्रेजी कैफ़े में जाकर कितनी ही अंग्रेजी झाड़ ली जाए ,आखिर घर आकर ईजा भात देदे कहने का मजा ही कुछ और है। 




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