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Showing posts from 2020

dramatic plastic

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 आजकल किसान बिल तथा उससे जुड़ी ख़बरों की चर्चा देश में जोरों पर है , आखिर इसका समाधान कब तक होगा और आंदोलित किसान कब तक अपनी माँगो पर डटे रहेंगे , यह कह पाना वाकई कठिन है।  जब तक आपने इन लाइनों को पढ़ा होगा तब तक दुनिया भर के सबसे बुद्धिमान और  विवेकशील प्राणी के रूप में'पहचाने जाने वाले हम मनुष्यों ने टनों के हिसाब से प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को विसर्जित कर दिया होगा।  राजनीति से इतर , आज यदि कोई मुद्दा सबसे ज्वलनशील (बर्निंग इशू ) है तो वह है - पर्यावरण और उसमें हो रहा बदलाव , जो निरन्तर नई चुनौतियां सामने ला रहा है। पर्यावरण प्रदुषण से जुड़ा ही है - "प्लास्टिक" , आज प्लास्टिक पर बात करते हैं - ज्यादा साइंटिफिक और आकड़ों से भरी बात कहना उचित नहीं होगा किन्तु सचेत रहना वाकई जरुरी है। प्लास्टिक एक ऐसा बहुलकीय (पॉलिमर ) पदार्थ है जो एक बार अस्तित्व में आने के बाद कई सौ वर्षों के लम्बे जीवनकाल को  व्यतित करता है और पर्यावरण के साथ-साथ मानवीय स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करता है।  हमारे द्वारा उपभोग(कन्ज्यूम ) की जाने वाली 95-98% वस्तुओं में प्लास्टिक

Back to school

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  एक लम्बे समय के बाद पुनः लिख रहा हूँ , इस दौरान देश - दुनिया में अनेकों घटनाएं घटी , सबसे शक्तिशाली देश में सत्ता परिवर्तन हो गया , ठंड बढ़ गयी , कोरोना जाते -जाते  अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा और दिल्ली में आजकल माहौल खासा गर्म है।  अब यदि इन सब सियासी उठापटक से थोड़ा अलग चला जाये तो ध्यान में रह जाता है -अपना देश और उसके भविष्य का निर्माण करने वाले बच्चे।          एक लम्बे अरसे से बच्चे स्कूल से दूर रह चुके हैं , यहां तक कि लगभग एक वर्ष की पढ़ाई पूरी तरह से घर पर ही चल रही है। बीच में कुछ राज्यों में स्कूल चल पड़े थे , किन्तु कोरोना ने पीछे झांक के देखा और माहौल वैसा ही बना दिया। (हालांकि शादियों का सीजन है और इस समय स्कूल खोलने की बात करना बच्चो को जरा अजीब लगेगा। ) प्रारम्भ में ऑनलाइन पढ़ाई का भी जोर था और नियमित कक्षाएं भी चल रही थीं , कुछ प्राइवेट विद्यालय मजबूरन इस परंपरा को निभा रहे हैं , किन्तु सरकारी विद्यालयों का तो टांका ही कभी तकनीकी विद्या से नहीं जुड़ पाया।  बच्चों में इस दौरान आया बदलाव :- पढ़ाई   को लेकर बच्चे ज्यादा बेफिक्र हुए हैं , यह असर छोटी से बड़ी सभी कक्षा के बच्

Bazarwaad

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  कुछ समय पहले फेसबुक पर स्क्रॉल डाउन करते वक़्त एक पोस्ट पढ़ी जिसमें लिखा था -"आने वाले 20 साल बाद यदि बच्चों से पूछा जाये कि दशहरा , दिवाली या होली पर क्या होता है तो उनका जवाब होगा -अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर सेल। " बदलते दौर में लोगों के तौर-तरीके भी बदले हैं ,और खरीददारी के मंच भी।  खरीददारी एक ऐसा टर्म है जो निरंतर चलता रहेगा ,मगर आज के समय लेन-देन के बीच जिस पर सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है वो है - बाजार !! माहौल त्यौहारी है और मौका खरीददारी का  , ऐसे में सबकी नजर बाज़ार पर  होती है ,हो भी क्यों न भला ?? किसी के लिए प्रॉफिट का समय है तो किसी के लिए काम की शुरुआत। भारतीय बाज़ार इस ख़ास माहौल के लिए विश्व प्रसिद्ध रहे हैं , यहीं कारण रहा कि वैश्वीकरण के बाद से लगातार विदेशी कंपनियों ने भारतीय बाज़ार पर अपना दम-ख़म जमाने के प्रयास किये। इन कंपनियों का ऐसा प्रभाव रहा कि प्रारम्भ की लाइनें इनकी दास्तां को बयाँ करती हैं।  आज टेक्नोलॉजी ने खरीददारी को  एक टच  तक सीमित कर दिया है साथ ही सामान खरीदने की उन  ढेरों कलाओं (बार्गेनिंग)  को भी धुंधला कर दिया जो लोगों ने प्राचीन समय से अपने में व

Mizaaj

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          लगभग दो हफ्ते बाद पुनः शुरू कर रहा हूँ , लिखने का अपना अलग ही मजा है। इस बीच ढेरों घटनाएं घटी और सबने अपना अपना इन्फ्लुएंस दिया , हमारा देश हमेशा अपनी विविधता में एकता (यूनिटी इन डाइवर्सिटी ) के लिए पॉपुलर रहा है ,और हो भी क्यों न ?? वैरायटी तो हममें जम कर भरी है।                          घटनाओं की विभिनत्ता के बाद भी एक चीज़ जो नहीं बदली वो है हमारे देश में राजनीति और राजनेताओं का मिजाज  !!                         भारतीय राजनीति का ये एक गजब पहलू है कि आप यहां अच्छे काम करके भले ही फेमस न हों मगर बुरे काम या यूँ कहें कि किन्ही बेवजह की वारदातों में भाग लेकर जरूर चमक जाएंगे।  आज भारत का राजनीतिक स्वरुप इतनी विविधता लिए है और घटिया वारदातों में लिप्त है कि महान कौटिल्य की नीति भी इसे समझ न पाए। यहां अब केंद्र और राज्य तथा स्थानीय सरकारों के काम में कोई फर्क नजर ही नहीं आता ,हर कोई एक-दूसरे के कामों में आसानी से दखल देने लगता है।           सत्ता पक्ष का  सख्त रवैया कहें या राज्यों की मनमानी , न राज्य केंद्र की बात मानने को तैयार हैं और न ही केंद्र नरमी के मूड में। विपक्ष का तो

angrezidan

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 हाल ही में एक बहस जो काफी चर्चित रही और हमेशा से ही सोचनीय  विषय रही है, वह है - हिंदी भाषा का प्रयोग।  भारत जैसे देश में जहां संस्कृत भाषा के साथ-साथ अनेकों भाषाओं का उदय हुआ , वहां संस्कृत की अनुवर्ती भाषा हिंदी का हाल बेहाल नजर आ रहा है। कुछ जगहों  पर तो हिंदी के  लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसे हालात हैं। प्राचीन काल से आधुनिक तक की यात्रा का अवलोकन करते हैं तो पाएंगे कि भारत पर अनेकों विदेशी साम्राज्यों का शासन रहा , हमने सभी की भाषा ,कला ,संस्कृति को अपनाया और उचित स्थान दिया, किन्तु अंग्रेजी सत्ता ने यहां राजनीति ,शिक्षा नीति , प्रशासनिक नीति जैसी प्रमुख नीतियों से अंग्रेजी को थोपना जारी रखा , एक लम्बे अंग्रेज शासन का प्रभाव यह रहा कि भारत का एक वर्ग अंग्रेजी के प्रभाव में अच्छे से आ गया , जिसे उच्च मध्यम वर्ग गया , बाद में तो फिर वही कि अंग्रेज चले गए और अंग्रेजी छोड़ गए।                 इस ऐतिहासिक घटना का प्रभाव यह रहा कि आज भी लोग हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को महत्व देते हैं। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा बेबाक अंग्रेजी बोले , स्कूल ऐसा हो जहां भले ही सिखाएं  कुछ न

DarkFake

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इंटरनेट आजकल हमारी जिंदगी का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है , और समय की जरूरत के हिसाब से होना भी चाहिए  यह उतना ही जरूरी हो चुका है जितना सब्जी में नमक ........बिना इसके लाइफ में अधुरापन सा लगता है। पिछले कुछ दिनों के दौरान मैंने जितने भी मित्रों से बात की तो उन सभी में एक बात जो मैंने कॉमन पायी कि ये कहीं न कहीं एक ही ढर्रे पर चले जा रहे हैं ........  मतलब सीधा सा है , जोश से लबालब ये मित्र भले ही आज करवटें बदलती राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे  हैं मगर इसका फोबिया घातक हो सकता है, और आज इस फोबिया को फेक न्यूज़ अधिक धारदार बना रहा है।  यहां एक बात को लिया जा सकता है  कि इस लेख को कितने युवा पढ़ सकते हैं या वाकई पढ़ना चाहेंगे , बजाए इसके कि वे 5 मिनट इसे पढ़ने के फेक न्यूज़ को 5 अन्य लोगों को भेजने में ज्यादा सुखी अनुभव करेंगे।  यह  सब  इंटरनेट का  कमाल नहीं  है बल्कि  इसे  यूज़ करने के लिए  ज्ञान की कमी है  जिसे  यहां  डिजिटल अज्ञानता कहा जाना  चाहिए।  डिजिटल अज्ञानता को एक अन्य तरीके से समझते हैं  ......... कुछ समय पहले फेसबुक पर एक ट्रेंड प्रचलित हुआ कि आप अपनी वर्तमान फोटो यहां

AtmaNirbharta

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         अभी कुछ दिनों पहले ही  साक्षरता  रिपोर्ट प्रकाशित हुई और हर बार की तरह उसमे केरल पहले स्थान पर , दिल्ली दूसरे और उत्तराखंड  तीसरे स्थान पर रहा। (मित्रों ये वाकई ख़ुशी की बात है। )                           अन्य राज्यों का क्रम भी सुधरा  है किन्तु अभी भी अनेक राज्यों में हालत  बेकार ही हैं।  एक अन्य  घटना आजकल छायी हुई है  रिया चक्रवर्ती और कंगना रनौत को लेकर , इन मामलों ने देश के सभी अन्य मुद्दों को किनारे  कर  इन दिनों का सर्वश्रेष्ठ  प्रदर्शन किया है (न्यूज़ वालो की तो इनके कारण  टी आर पी  जबरदस्त रूप से बड़ी है ) तीसरी और अंतिम  जबरदस्त  घटना है  देश में  पबजी  का बैन होना।                    उपरोक्त तीनो घटनाएं वाकई चर्चा का कारण हैं और लम्बे समय तक चलने वाली भी हैं अब नीचे की दो खबरों पर  वक़्त जाया करना सही नहीं होगा हमें कहीं और ध्यान देना होगा   .......मगर इन्ही के बीच से एक घटना बाहर को झांकते हुए ये रिक्वेस्ट कर रही है कि कोई मेरी ओर भी ध्यान दें  ......... घटना है  आत्मनिर्भर भारत की घोषणा की।    इस कदम को सभी महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक माना जा सकता है क्यों कि

Exam Ka Rona

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 पिछले दिनों के दौरान कुछ मित्रों से बात हुई तो लगभग सभी इस बात से चिंतित थे कि ये कॉलेज वाले भी न जाने कैसे हैं ......माहौल कोरोनामय हुआ है और ये एक्साम्स करवा रहे हैं। मित्रों की इसी इच्छा के अनुसार आज का लेख :- दरअसल मुद्दा तो चिंतनीय है कि कोरोना का कहर थमने का नाम तक नहीं ले रहा है , वो थमे भी कैसे ??        अक्सर लोग संचरणशील होते हैं और उनका एक ही जगह पर थम जाना वाकई गलत ही है। यही फार्मूला कोरोना ने भी अपना लिया है , अब इससे निजात पाने के दो ही तरीके हो सकते हैं :- वैक्सीन का इन्तजार करा जाये और तब तक हाथ बांधे रहो , सुरक्षा के साथ काम करते रहो।  मित्रों की चिंता :- सबसे पहली कि केवल फाइनल ईयर में होने के कारण ही उनको पेपर देने पड़ रहे हैं , माहौल का डर  इस दौरान पढ़ाई  ठीक ढंग से नहीं हो पायी , न तो कॉलेज वालो ने इस ओर कुछ ध्यान दिया  कुछ कॉलेज में ओपन बुक एग्जाम हुए , हमें भी ऐसी ही कुछ सुविधा मिले   प्रैक्टिकल , मौखिक आदि में कॉलेज नंबर अपनी मनमर्जी से ही देंगे , तो फिर आधी-अधूरी परीक्षा कैसी ?? क्या मित्रों की चिंता सही है ??:- इसमें कोई दोराय नहीं  कि चिंता नहीं है , लेक

Rojgaar

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                                                                                                                                                                                                                             लल्लन के चेहरे पर आज हर बार                                                                                                                       की  तरह निराशा थी , आज फिर इंटरनेट कैफ़े से बहार निकलते हुए वह तंत्र को मन ही मन कोस रहा था , यह निराशा थी पिछले डेढ़ साल पहले दिए प्रतियोगी परीक्षा के रिजल्ट न आने की।          यह कहानी है लल्लन जैसे उन लाखों ऐसे युवाओं की जो रोज सरकारी वेबसाइट पर अपने रिजल्ट्स को खंगालते हैं , लेकिन अधिकांश का परिणाम आता ही नहीं है , समझ नहीं आता  कि सरकार नौकरी के लिए परीक्षा करवाती है या किसी सर्वे की रिपोर्ट तैयार करने के लिए .........!!  भारत विश्व में नित नए जनसंख्या वृद्धि संबंधी रिकॉर्ड  बनाता जा रहा है , बिना सस्टेनेबल डेवलपमेंट की चिंता किये। आज लगभग 140 करोड़ जनसंख्या को जमीन पर देखकर पंछी तक परेशान हैं कि ऊपर से अपना दाना कहां ढू

HumLog

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  सबसे पहले तो आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ...............  आज आप  74 साल के भारत में खुलकर सांस ले रहे हैं, और अपार संभावनाओं के बीच खड़े हैं।  हर साल की तरह ही भाषण , पुरानी उपलब्धियों  पर चर्चा , झण्डा रोहण सभी हुआ , मगर इस बार आप लिफाफे में रखे दो लड्डू ,एक समोसा मिस कर रहे होंगे। हाल ही में मूड ऑफ़ दी नेशन  रिपोर्ट जारी हुई , वर्तमान सरकार पर 77% लोगों ने भरोसा जताया है और कार्यों की सराहना की है। इसमें लोग 370 , चीन के साथ जवाबी कार्यवाही , नेपाल के मुद्दों को लेकर खासा एक्ससाइटेड रहे , साथ ही सरकार से मिलने वाली आर्थिक सब्सिडी को लेकर भी। यह वाकई अच्छा है कि सरकार नागरिक हितों का ख्याल रख रही है और जरुरी सेवाओं के साथ -साथ आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रहीं है। मगर ध्यान रखें कि ज्यादा समय तक ऐसा होना अच्छा नहीं है।  अक्सर ऐसा होता है कि सबकुछ बना -बनाया हाथ पर मिलता रहे तो आदमी --नीरस और आलसी हो जाता है......... मेरा मामला भी कुछ-कुछ ऐसा रहा है।   वैसे सरकार की मंशा तो ठीक है कि गरीब आदमी की आर्थिक मदद और चीजें सस्ते दामों पर उपलब्ध हों , मगर परेशानी यह है कि हमारे

KalYug

सदियों के संघर्ष के बाद आखिर भारत में रामराज्य का सपना पूरा होने जा रहा है ,अयोध्या में राम जन्म भूमि पूजन के साथ ....... वैसे तो राम अनंत हैं जिनकी व्यख्या करना असंभव है मगर पूरे क्लाइमेट में राम -राम चल रहा है तो हम भी बहती गंगा में डुबकी मार ही लेते हैं ,नहीं नहीं बहती सरयू में ,क्यों ??                पिछले दिनों राम के बारे में थोड़ा-बहुत जानने को मिला तो उसी का कलयुगी व्यू रख रहा हूँ ......  राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है कलयुग में वैसे तो इस शब्द के लिए कोई जगह नहीं है , मगर बहुत से लोग अभी लिमिट के अंदर ही हैं ,उम्मीद की जा सकती है कि वे अपना आपा न खोएं। यही मर्यादा का कांसेप्ट वर्ल्ड लेवल पर देखें तो कुछ बिगड़ैल कभी आउट ऑफ़ कंट्रोल हो जाते हैं ,हाल के वर्षो में इसमें वृद्धि देखी गयी है।   राम के करैक्टर में त्याग और डेडिकेशन रहा है ,बारह वर्षों तक दंडकारण्य में वनवास और हाय-फ़ाय लाइफ स्टाइल से त्याग उन्हें महान बनाता है। कलयुग में यह मजाक करने जैसा लगता है ,आज व्हाट्सएप और इंस्टा का जमाना है लोग त्याग के नाम पर केवल मोबाइल चार्जिंग तक का ही इन्तजार करते हैं।  राम अ

Sugandh......

कुमार भाई क्या ले रहे हो 11वीं में  ??-भाई समझ नहीं आ रहा है विज्ञान या कॉमर्स , कुछ मित्र तो कॉमर्स ले रहे हैं और कुछ विज्ञान का सोच रहे हैं ,घर वाले भी बोल रहे हैं विज्ञान ले लो  मार्क्स भी अच्छे हैं  तुम्हारे और भविष्य भी अच्छा है इस फील्ड में....!!            अभी तक ऐसा ही होता आ रहा था ,अपनी सोचने की शक्ति थी नहीं और फ्यूचर डिसाइड होता था दोस्तों और परिवार वालों की फ्यूचरिस्टिक थिंकिंग से। बच्चा ऐसे विषयों के चंगुल में फंस जाता जहां से निकलना मुश्किल था , अब 1995 में लिखी पुस्तकों का प्रत्येक वर्ष रिप्रिंट मटेरियल पढेंगे तो 21वीं सदी में कहां तक जा पाएंगे ??                       आजकल भारत की फिजा में सुगन्ध फैली हुई है सुना है कि नई शिक्षा नीति बनी है .......वो भी 34 साल बाद .........!!  अब इसके प्रावधानों को यहां बताना तो उचित नहीं होगा , भाई छ: दिन हो गए हैं और जमाना है इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का !!           दरअसल हमारी शिक्षा प्रणाली अभी तक वही रटंत विद्या तक सीमित रही थी , नई नीति के कारण कुछ अच्छा हो इसकी काफी उम्मीदें हैं। अब बच्चा आइंस्टीन के साथ महादेवी वर्मा और

pados......

अक्सर यह माना जाता रहा है कि हमारे विकास में हमारे करीबियों की एक बड़ी भूमिका होती है। ये हमारे पारिवारिक लोग ,मित्र ,सहपाठी कुछ भी हो सकते हैं ........मगर इन सबके साथ जो सबसे महत्वपूर्ण  हैं वो रहे हमारे........पड़ोसी !!            ये हमें बनाने में बड़ी सहायता करते हैं  और हमें गिराने में भी । खैर पड़ोसियों का होना लाजिमी है वो भी भारत जैसे देश में जहां इतनी ज्यादा जनसंख्या हो .......यहां पड़ोसियों का मतलब सिर्फ घर के आस -पास रहने वालो से नहीं  होता ........  बल्कि वो पड़ोसी ही क्या जिसे ये न पता हो कि हमारे घर आज रात क्या सब्जी बनने वाली है ?? अगले हफ्ते हमारे घर में कौन मेहमान आने वाला है ?? भले ही हम बाद में जानें।  अपने देश में लोगों का इतना घुलना -मिलना वाकई अच्छा है।                                          मगर अब जरा वर्ल्ड सिनेरिओ   को समझना भी तो बनता है न ?? हालांकि दुनिया भर में भी ऐसा ही होता है मगर वहां की बॉन्डिंग यहां के मुकाबले कम है। इसलिए वे लोग अपने विकास की दौड़ में पड़ोसी नामक  शब्द   से कम प्रभावित होते हैं।                    अब पड़ोसियों की बात आ ही गयी है तो हम अप

busy.........!!

व्यस्तता (बिजी ) ये शब्द भी बहुत मायने रखता है कि इसका जोर  किस ओर है। हालांकि ऐसा माना जाता रहा है कि व्यस्त इंसान किसी बड़े लक्ष्य की ओर अग्रसर है। मगर हो कुछ भी ये  परिणाम ही तय करते हैं कि फिर काम बहुत ज्यादा व्यस्त रह कर किये गये हों या व्यस्त के  साथ मस्त रहकर।                 ये क्या ?? ऊपर की बातें कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गयी और शायद जटिल भी।   व्यस्तता का कल्चर अपने यहां भी है जिसके इफ़ेक्ट कुछ ज्यादा ही अलग हैं। मगर उससे पहले कुछ इम्पोर्टेन्ट बातें कर लेते हैं।                     हमेशा से मेरे मन में ये विचार आता था कि अपना देश ,अपनी सभ्यता और अपनी शिक्षा महान है तो फिर दुनिया भर की महान साइंटिफिक रिसर्च और इनोवेशन से हमारा नाता क्यों नहीं जुड़ पाया?? ........  इस दौरान हम कहाँ बिजी थे ??    जब खोज की तो पाया कि सब इनोवेशन और मॉडर्न टेक्नोलॉजी उन्ही लोगो के नाम रहीं जो वाकई में इस ओर व्यस्त और मस्त रहे  ........इसे थोड़ा तर्क के साथ बताया जाये तो इसके पीछे क्लाइमेट भी एक फैक्टर रहा ,   यूरोप और अमेरिका के भाग जहां क्लाइमेट मेडिटेरेनियन रहीं (जीवन के लिए सबसे बेस्ट क्लाइमेट

Idhar Udhar Se...........

आज गांव की पुलिया पर एक चोरी की चर्चा हो रही थी ......… जब चोर का पता चला....... तो नाम आया..........  "भीमा का" ..... !! भीमा अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था .......हाल ही में नवीं का दुर्गति पत्र लेकर जब वो घर आया तो घर में पड़ी डांट से परेशान था .......अब उसको  दो रास्ते नजर आ रहे थे  पहला ...…  कि दोबारा मेहनत कर दुर्गति पत्र को अगले साल प्रगति पत्र में बदल लिया जाये जो कमोबेश एक कठिन काम नजर आ रहा था।  दूसरा........ कि चोरी करने पर दोस्तों से मिली शाबाशी का आगे गुणात्मक योग करके वाहवाही बटोरना।          भीमा अब बदलना चाहता था वो लाइफ में कुछ एक्स्ट्राऑर्डिनरी करने का मन बना चुका था अपने फ्रेंड-जोन से प्रभावित होकर उसने हर वो खतरे मोल लिए  जो हॉलीवुड का एथन  हंट (टॉम क्रूज़ )भी लेने से शर्मा जाए। ख़ैर भीमा ने आस -पास अच्छी खासी पकड़ बनाई और बन गया डॉन इलाके का .......और फिर वही भारतीय परंपरा के अनुसार  जहां डॉन वहीं सबके फ़ोन .......वहीं से सिस्टम ऑफ और वहीं से ऑन।  ये सिलसिला चलता गया और नेता से अभिनेता सब उसकी गड्डी में मौजूद तास के पत्ते जिसकी जरूरत पड़ी उससे निकाला और

purani charcha.........

तो अपनी पुरानी चर्चा को ही आगे बढ़ाते हैं ........ भारत  बनाम इंडिया   हाल ही में  सुप्रीम कोर्ट मे दाखिल याचिका में एक याचिकाकर्ता ने आवाहन किया था कि देश को इंडिया  नाम  से सम्बोधित करना गुलामी की भावना को बताता है।  जो कहीं न कहीं देश की संप्रभुता में बाधा है।   तो उपरोक्त विवरण तो था......…  चर्चा का कारण ....!!   अब बढ़ते हैं कभी न खतम होने वाली अपनी शुद्ध इंडियन या भारतीय परंपरा पर ........ यार अब यहां पर भी टकराहट उत्पन्न हो गईा  आखिर बोलना क्या हुआ ?? वैसे यह कोई नया मुद्दा नहीं है मगर कभी कभी ऐसा लगता भी है कि आखिर इतना कंट्राडिक्शन क्यों ?? तो साहब ये है तो उन गोरे लोगो की ही देन........               अपना देश महान परम्परा का साक्षी रहा है यह राम राज्य को भी बताता है जहां मर्यादा की पराकाष्ठा रही और एक सभ्य समाज का विकास भी , वहीं  यह युद्ध की चरम अवस्था,  महाभारत का भी परिचायक रहा है जिसने बताया कि धर्म की  स्थापना के लिए अधर्म के सामने कैसे लड़ा जाता हैा             यह भाईचारे की भूमि रहा है जहां कभी रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजीा इन सब मामलों में कभी कोई डिस्प्यूट

Baaten.........

अच्छा .......!! एक महत्वपूर्ण 'बात' है   ......... बात जी हाँ बात यह तो नहीं पता कि किसने बनाया वाक्य सौ बातो की एक बात  ......... अपने यहां तो एक बात की सौ बात का कल्चर है।  किसी भी एक बात का सैम्पल तैयार कर लो और कुछ ही देर बाद उसकी सौ -हज़ार वैरायटी बन जाती हैं वो भी वैल्यू एडिशन के साथ .....है न मजेदार प्रोसेसिंग।  हालाँकि ऐसा बाहरी देशो मे कम ही देखने को मिलता है इसके पीछे का कारण हमेशा से ही हमारा सभ्य कल्चर रहा है जहाँ किसी भी चर्चा पर विशेष विश्लेषण ,आलोचना ,तथा समालोचनाएँ होती रहती हैं  और मजे की बात ये है कि हमारी चर्चाओं का निष्कर्ष कभी नहीं निकलता ,ऐसा क्यों भला ??   .........  क्यूंकि बात खत्म करना हमने सीखा ही नहीं। खैर  .........काम नहीं है तो कुछ न कुछ सोचना तो दिमाग का काम है ही और न सोचें तो ये जंग खा जायेगा। ऐसा हर किसी के साथ है - नैसर्गिक नियम है   ज्यादा सोचो मत ........!! अच्छा हमारे यहाँ लोग  ऐसे ही खाली समय का उपयोग कर आपस में चर्चाएं करते रहते ,अपने ज्ञान का गुल्लक सबके सामने खोलते और जमा पूँजी सभी को थोड़ी थोड़ी मिलती .......जो अब पूँजीवादी ढर्रे क

Yu hi.......

शालू ........ शालू ......... शालू !! अरे कहाँ है ये देख जल्दी आ  .......!! अरे आयी यार बता क्या बात है ? तेरे बड़े चर्चे हो रहे हैं आजकल  ..... क्या हुआ ये तो बता ?? देख तो सही आज तेरे टिक टॉक पे कुछ ज्यादा ही लाइक्स आ गए ........क्या बात ?? शालू - अरे वो बस टाइम पास है चंद्रा -अच्छा या कुछ और भी ?? नहीं तो बस थोड़े पैसे भी मिल जा रहे है बल मैंने सुना ........ अच्छा फिर ठीक है यार तो मैं भी ज्वाइन करुँ क्या आज से ?? हाँ  हाँ कर ले मजा आता है और टाइम भी पास हो जाता है।     ......... चल करती हूँ आज !! कम से कम फ़ोन तो रिचार्ज हो ही जायेगा ऐसा ही हो रहा है न आजकल मिलेनियल्स मे  बिना सोचे समझे कुछ भी .........किये जा रहे हैं जो किसी भी मतलब का नहीं है और लालच भी किस चीज़ का पाला है टाइम पास करने का और सिमित कर दिया है केवल फ़ोन के रिचार्ज तक की कमाई मे !!!!!!!!       टिक टॉक ,हेलो जैसे न जाने कितने ही परदेशी ऍप्स ने हम लोगो की सोच को यहीं  ला दिया है अब इसके विरोध मे बाते तो बहुत बताई जा सकती हैं जो कि  डिफेन्स मे थोड़ी देर काम कर भी जाये मगर सोच तो वैसी ही रहेगी न ?? अब चलते हैं

samay ka badlav.........

समय सदा चलता रहता है कभी किसी का तो कभी किसी का मगर आजकल कोरोना का .........  हर बार कुछ न कुछ बदला है इस बार भी बदलेगा मगर बड़ी तेजी से.......... इतिहास ने  अनेको परिस्थितियों को बदला मगर इस बार कुछ और  बदलेगा शायद अब से काल बदले जैसे कोरोना से पहले का काल या कोरोना के बाद का का ल और यह समय होगा बड़ा अचरज भरा ........ !! सबसे पहले अब लोगो के  जीने के तरीके  में बड़ा बदलाव आएगा। अब लोग किसी भी वस्तु को लेकर पहले से ज्यादा सजग हो सकेंगे।  खाने पीने में लापरवाही, स्वछता के लिए ढिलाई साथ ही एकदम से बाहरी लोगो के संपर्क में आना ........  ये सब अब बदलने वाला है। प्रकृति के साथ  छेड़छाड़ का ही नतीजा है  कि अब लोगो को वातावरण में बदलाव के बजाये अपने रहन सहन में बदलाव की  आवशयकता होगी। एक और  बदलाव आएगा तकनीक में जैसे  खबर मिली की चीन व अन्य देशो में  कोरोना को ट्रैक करने के लिए ब्रेसलेट का प्रयोग होने लगा है जो शरीर की गतिविधि को मापेगा अभी के हिसाब से तो यह  है मगर इसे अनिवार्य कर दिया गया तो इसके डाटा को पाकर कैसे सरकारें व अन्य कम्पनियाँ  लोगो लोगों के जीवन में दखल दे सकती है इसका अं

sahar ka kona.......

शहर का कोना आज का दिन बहुत ही अचरज भरा रहा  शहर के अन्य स्थानों व मध्य भाग मे जहां स्थितियाँ अच्छी हैं वहीं एक इलाका ऐसा भी है जहाँ की स्तिथि  दयनीय है  स्थान का नाम   " कंजरपराव"   यानि  "  कंजरो की बस्ती" दरअसल जगह को अलग रखें तो वहाँ  एक अचरज जो था वो वहां का प्राइमरी विधालय  जहाँ भवन के नाम पर कुछ भी नहीं था   खुले आकाश के नीचे लगी एक कुर्सी और सामने बैठे चार पांच बच्चे !!!!!  जनवरी का महीना कोहरे की ठंडी लहरें जो शरीर पर चाकू की तरह चुभी जा रही थीं इस हालत में भी  बच्चो का जोश और पड़ने की ललक जो मानो सभी परिस्थितियों को ठेंगा दिखा रही थीं।  इन बच्चो का कोई पारिवारिक आधार नहीं है खली समय मे ये बच्चे भीख मांगते हैं और आस पास ही झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं।  सरकार व अन्य संस्थाए शायद ही इनकी ओर ध्यान देती हों।  अगर हम सभी अपने आस पास के ऐसे बच्चो को पढ़ाई में जरा सा भी सहयोग कर सकें  तो ये बच्चे बहुत हद्द तक अपना और अपने लोगो का विकास कर उन्हें मुख्य धारा में ला सकते हैं।  
नमस्कार  !! पहली पोस्ट  कितना  सुखमय  है  यह शब्द ऊर्जा से  भरपुर; प्रेरणा से लबालब  वास्तव मे ऊर्जा के , प्रगति के सभी  मार्ग इसी ओर से शुरू होकर गुजरते हैं  प्रयास  है मेरा यह कि कुछ अच्छा, वास्तविक और प्रेरणादायी आपके सामने रखूँ      लिखना पसंद है और इसके जरिये कुछ करने की मनसा भी ; टीचर ने बताया था कि " स्टार्टिंग इज दी  हॉफ ऑफ़ दी  बेटल "  इन्ही शब्दो को मन मे बसा लिया और किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले इनका जिक्र अवचेतन मन मे होने लगता है कि क्यों न कुछ अच्छे कार्यो को शुरू   किया जाये ? आशा करूँगा की मेरी आने वाली सभी पोस्ट आप लोगों को पसंद आये  !!